Madhu varma

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लेखनी कविता -सूरज का रथ - बालस्वरूप राही

सूरज का रथ / बालस्वरूप राही


सूरज का रथ बड़ा निराला,
जुते हुए हैं घोड़े सात!

घोड़ा एक लाल भड़कीला,
घोड़ा एक हरा चमकीला,
घोड़ा एक चमाचम पीला,
एक बड़ा ही गहरा नीला,
एक आसमानी बर्फ़ीला,
एक जामुनी छैल-छबीला,
एक संतरे-सा चटकीला,
एक घोड़ा बेहद फर्तीला।

बड़े यिम से ये चलते हैं,
सुनते नहीं किसी की बात!

सर्दी में दौड़ें ये सरपट,
गर्मी में करते कुछ झंझट,
पी जाते हैं नदियाँ गटगट,
कुछ जल भाप बनाते झटपट,
कहीं गिराते ओले पटपट,
बादल से कहते-पीछे हट,
पर्वत से करते हैं खटपट,
सातों ही घोड़े हैं नटखट!

इनको रोक नहीं पाती है,
आए आँधी या बरसात!

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